बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: भ्रूण हत्या के खिलाफ एक आवाज़
कुछ वर्षों से भारत में एक खास अभियान चलाया जा रहा है, जिसका नाम है "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ"। यह अभियान खासकर उन स्थानों पर जहां कन्या भ्रूण हत्या की समस्या तेजी से बढ़ी है, वहां के लिए महत्वपूर्ण है। हाल ही में हरियाणा के गांव चैहड़ खुर्द में आयोजित जागरूकता रैली ने एक बार फिर इस महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान खींचा।
जागरूकता रैली का उद्देश्य
जागरूकता रैली का आयोजन स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया गया, जिसमें सिविल सर्जन डॉ रघुवीर शांडिल्य की अगुवाई में छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इस रैली का मुख्य उद्देश्य था लिंगानुपात में सुधार और बेटियों के प्रति समाज की विचारधारा में बदलाव लाना। विद्याार्थियों ने बैनर और पोस्टरों के जरिए कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने का संदेश दिया।
रैली में विद्यालय की प्राचार्या सुमन देवी ने बताया कि बेटियां न केवल परिवार का गौरव होती हैं, बल्कि वे पूरे समाज के विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
बेटियों का अधिकार
इस रैली में शामिल स्वास्थ्य विभाग के सदस्य प्रदीप कुमार और सुनील कुमारी ने बेटे और बेटियों के अधिकार में कोई भेदभाव न करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि "कन्या भ्रूण हत्या केवल एक अपराध नहीं है, बल्कि यह समाज में गहरे तक फैली सोच का एक कलंक है।"
समाज में बेटियों की भूमिका
- संस्कृति का संवर्धन: बेटियां अपनी संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- परिवार का गौरव: वे न केवल अपने माता-पिता का नाम रोशन करती हैं, बल्कि समाज का भी मान बढ़ाती हैं।
- शिक्षा और करियर: आजकल के लिए बेटी का शिक्षा और करियर का महत्व बहुत बढ़ गया है।
सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
कार्यक्रम के समापन पर विद्यार्थियों से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शपथ दिलाई गई। सभी ने मिलकर यह संकल्प लिया कि वे अपने अभिभावकों और आसपास के लोगों के बीच जागरूकता फैलाएंगे। महत्वपूर्ण संदेश यह था कि हमें मिलकर इस मुद्दे पर काम करना होगा ताकि बेटियां भी समाज में सम्मान और मौका पा सकें।
निष्कर्ष
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान न केवल एक सामाजिक मुहिम है, बल्कि यह एक सशक्तिकरण का प्रतीक भी है। कन्या भ्रूण हत्या जैसे गंभीर अपराध को रोकने के लिए समाज के हर वर्ग को मिलकर काम करना होगा। जब हम बेटियों को उनकी प्रतिभा साबित करने का अवसर देंगे, तब ही समाज का वास्तविक विकास संभव है।
इस प्रकार, जागरूकता रैलियों जैसी गतिविधियाँ इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं। हमें इस मुद्दे पर सोचनें और काम करने की आवश्यकता है, ताकि हमारे देश की बेटियाँ सुरक्षित और विकसित हो सकें।