सोशल मीडिया पर हाल ही में एक खबर तेजी से फैल रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के संपत्ति अधिकार खत्म कर दिए हैं। लेकिन वास्तविकता इससे कुछ अलग है। इस लेख में हम इस विषय की गहराई में जाएंगे और देखेंगे कि इस फैसले के पीछे के तर्क क्या हैं और इसके मुख्य बिंदु क्या हैं। आइए समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला
2020 में एक महत्वपूर्ण मामले, विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा, में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि बेटियों को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार हैं। लेकिन हाल ही में, अप्रैल 2025 में, एक और मामले में कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों को चिन्हित किया है, जिनके आधार पर बेटी को संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। यहां यह समझना आवश्यक है कि यह फैसला केवल स्वअर्जित संपत्ति पर लागू होता है, न कि पैतृक संपत्ति पर।
किन बेटियों को नहीं मिलेगा संपत्ति में अधिकार?
इस नए फैसले के अनुसार, कुछ विशेष स्थितियों में बेटियों को संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। ये स्थितियां निम्नलिखित हैं:
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पिता से संबंध विच्छेद: यदि बेटी ने कानूनी रूप से अपने पिता से संबंध तोड़ लिया है, तो उसे संपत्ति में दावा करने का अधिकार नहीं होगा।
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पालन-पोषण का दावा: अगर किसी बेटी ने अपने पिता से कोई आर्थिक सहायता या शिक्षा प्राप्त नहीं की है, और उसकी परवरिश उसकी मां या किसी अन्य संरक्षक ने की है, तो भी उसका अधिकार प्रभावित हो सकता है।
- संपत्ति का प्रकार: यह फैसला केवल स्वअर्जित संपत्ति पर लागू होता है; पैतृक संपत्ति में उसके अधिकार बनाए रखते हैं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम: बेटियों के अधिकारों का इतिहास
भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकारों का यह सफर एक लंबा और जटिल रहा है। आइए इसे समझते हैं:
- 1956 का कानून: इस समय बेटियों को पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था।
- 2005 का संशोधन: बेटियों को जन्म से ही बेटों के बराबर अधिकार दिए गए।
- 2020 का फैसला: विनीता शर्मा मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि 2005 का संशोधन पूर्वनिर्धारित है, यानी 1956 से पहले जन्मी बेटियों को भी संपत्ति का अधिकार मिलेगा।
- 2025 का फैसला: इस फैसले ने पिता-बेटी के रिश्ते को संपत्ति अधिकार से जोड़ दिया है।
संपत्ति अधिकारों के लिए जरूरी दस्तावेज
बेटियों को संपत्ति में अपने अधिकार का दावा करने के लिए कुछ कागजात की आवश्यकता होती है। इनमें शामिल हैं:
- जन्म प्रमाणपत्र: यह पिता और बेटी के रिश्ते का प्रमाण है।
- संपत्ति के कागजात: संपत्ति की रजिस्ट्री, वसीयत या अन्य संबंधित दस्तावेज।
- पिता का मृत्यु प्रमाणपत्र: यदि संपत्ति विरासत में मिल रही है।
कैसे करें संपत्ति में दावा?
अगर कोई बेटी अपनी अधिकारों का दावा करना चाहती है, तो उसे निम्नलिखित चरणों का पालन करना चाहिए:
- वकील से सलाह लें: सबसे पहले, एक कानूनी सलाहकार से मिलें।
- कागजात इकट्ठा करें: सभी आवश्यक दस्तावेज तैयार करें।
- मध्यस्थता: परिवार के साथ बातचीत करें और समझौता करने का प्रयास करें।
- न्यायालय में केस दर्ज करें: यदि समझौता संभव नहीं है, तो सिविल कोर्ट में मामला दर्ज करें।
- फैसले का पालन करें: न्यायिक आदेश का पालन करें और संपत्ति का कानूनी बंटवारा सुनिश्चित करें।
निष्कर्ष
इस लेख में हमने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बारे में चर्चा की और यह स्पष्ट किया कि यह फैसला कुछ विशेष परिस्थितियों में ही लागू होता है। बेटियों के संपत्ति अधिकारों को खत्म नहीं किया गया है, बशर्ते वे अपने पिता के साथ संबंध बनाए रखें और पैतृक संपत्ति में दावा कर रही हों।
हालांकि, स्वअर्जित संपत्ति के मामलों में पिता की इच्छा और रिश्ते की प्रकृति महत्वपूर्ण होती है।
Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है और किसी कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है। इसलिए किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले विशेषज्ञ से परामर्श करना न भूलें।