हिमाचल प्रदेश में शिक्षा प्रणाली में बदलाव: बंद और मर्जिंग स्कूलों का प्रस्ताव
हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाने की योजना बनाई है। शिक्षा निदेशालय ने उन स्कूलों की पहचान की है, जहां छात्रों की संख्या बेहद कम या बिल्कुल शून्य है। शिक्षा के संसाधनों के बेहतर उपयोग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए पिछले हफ्ते इस योजना का खाका तैयार किया गया है। इस निर्णय का सीधा प्रभाव 103 स्कूलों पर पड़ेगा, जो कि शून्य दाखिले दर्शा रहे हैं।
103 स्कूल होंगे बंद
हाल ही में हुए आंकड़े संग्रह के अनुसार, 21 अप्रैल 2025 तक स्थिति में 103 स्कूलों में एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया है। इन स्कूलों में शामिल हैं:
- 72 प्राइमरी स्कूल
- 28 मिडल स्कूल
- 3 हाई स्कूल
इन सभी स्कूलों को बंद करने का जो प्रस्ताव है, उसका मुख्य उद्देश्य संसाधनों की बर्बादी को रोकना और शिक्षा बजट का सही उपयोग सुनिश्चित करना है।
443 स्कूलों का मर्जिंग प्रस्ताव
इस ताजा घोषणा के मुताबिक, 443 ऐसे स्कूल भी हैं, जहां छात्रों की संख्या 10 या उससे कम है। इन्हें आसपास के स्कूलों में मर्ज करने का विचार किया गया है। इस मर्जिंग प्रक्रिया से कई लाभ होंगे:
- छात्रों को बेहतर आधारभूत सुविधाएं मिलेंगी
- शिक्षकों की तैनाती को अधिक प्रभावी बनाया जाएगा
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित होगी
शहरों और गांवों में शैक्षणिक स्तर को बनाए रखने के लिए 2 से 5 किलोमीटर के भीतर पड़ने वाले स्कूलों को प्राथमिकता दी जाएगी।
प्राइमरी स्कूलों की स्थिति
विशेष रूप से प्राइमरी शिक्षा के लिए बनी योजना में 203 प्राइमरी स्कूलों को भी मर्ज किया जाएगा, जिनमें 5 या उससे कम छात्र हैं। ये स्कूल 2 किलोमीटर के दायरे में स्थित अन्य स्कूलों में विलीन किए जाएंगे। हलांकि, 142 स्कूल ऐसे हैं जिनके पास 2 किलोमीटर के भीतर कोई अन्य स्कूल नहीं है, इसलिए उन्हें 3 किलोमीटर तक के दायरे में आने वाले स्कूलों से जोड़ा जाएगा।
मिडल और हाई स्कूलों पर प्रभाव
मिडल और हाई स्कूलों की स्थिति भी चौंकाने वाली है।
- 92 मिडल स्कूलों में 10 या उससे कम छात्र हैं, जिन्हें 3 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित स्कूलों में मर्ज करने की योजना है।
- 7 हाई स्कूलों में छात्रों की संख्या 20 से कम है, और 39 हाई स्कूलों में सिर्फ 5 से 10 छात्र हैं।
इस प्रकार के स्कूलों में कई का दर्जा घटाकर मिडल स्कूल बनाने का प्रस्ताव है, जिससे छात्रों की संख्या को संतुलित किया जा सकेगा।
सह-शिक्षा को बढ़ावा
इस निर्णय का एक अन्य महत्वपूर्ण аспект यह है कि 39 स्थानों पर लड़के और लड़कियों के अलग-अलग स्कूलों को मिलाकर सह-शिक्षा स्कूल बनाने का विचार किया जा रहा है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत, बेहतर आधारभूत सुविधाएं वाले स्कूलों में कक्षा 1 से 10 तक की शिक्षा दी जाएगी, जबकि अन्य में कक्षा 11 और 12 की पढ़ाई करवाई जाएगी। यह लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने वाला कदम है और अभिवृद्धि के लिए एक अवसर प्रस्तुत करता है।
संभावित फायदे और चुनौतियां
इस निर्णय से कुछ स्पष्ट फायदे सामने आ रहे हैं:
- शिक्षकों की बेहतर तैनाती और प्रशिक्षण
- उन्नत शैक्षणिक सुविधाओं तक पहुंच
- लैंगिक समानता को बढ़ावा
- शैक्षिक प्रदर्शन में सुधार
हालांकि, इसके साथ ही चुनौतियों का सामना भी करना होगा:
- दुर्गम क्षेत्रों में छात्रों की स्कूल तक पहुंच में कठिनाई
- स्थानीय समुदाय का भावनात्मक जुड़ाव
- आवागमन की समस्याएं और बढ़ती लागत
सरकार का अगला कदम
यह प्रस्ताव अब सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा जा चुका है। उम्मीद की जा रही है कि इसे जल्द ही मंत्रिमंडल की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा और जुलाई सत्र से लागू किया जा सकता है। इस पूरे प्रक्रिया के दौरान सरकार को छात्रों की सुरक्षा और उनकी शिक्षा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देनी होगी।
समग्र रूप से, यह निर्णय हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का आकलन किया जाना आवश्यक है। शिक्षा को ताकतवर बनाने के लिए यह कदम जरूरी है, लेकिन यह स्थानीय समुदाय की सहमति के बिना प्रभावी नहीं हो सकता।